कोसी के कछार पर कोरोना के प्रति लोगों को कर रहीं जागरूक

• खुद से मास्क का निर्माण कर दीदियों में कर रहीं वितरित
• लोकमानपुर की जीविका समूह की शांति देवी बन गईं कोरोना योद्धा
भागलपुर, 27 अप्रैल
जूली जीविका स्वयं सहायता समूह की सदस्य शांति देवी कोसी के कछार पर स्थित लोकमानपुर पंचायत में लोगों को कोरोना के संक्रमण के प्रति जागरूक कर रही हैं। वह खुद से मास्क तैयार कर दीदियों में वितरित कर रही हैं। अभी तक वह 3000 से अधिक मास्क का निर्माण कर दीदियों के बीच बांट चुकी हैं। मास्क की कीमत सिर्फ 15 रुपये ले रही हैं।
विपरीत हालातों में भी नहीं मानी हार:
   कोरोना जैसी महामारी को रोकने के लिए गांव शांति देवी लोगों को जागरूक भी कर रही हैं।  उनका कहना है कि विपदा की इस घड़ी में कम कीमत पर लोगों को मास्क उपलब्ध कराकर खुशी हो रही है. ऐसा लग रहा है  कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मैंने भी कुछ किया है. शांति देवी एक विधवा का जीवन व्यतीत कर रही हैं। वर्ष 2003 में पति की मौत के बाद वह अपने मायके लोकमानपुर आ गई  और सिलाई व कढ़ाई का कार्य करने लगीं। आर्थिक संकट का सामना कर रही शांति देवी को एक दिन जीविका समूह के बारे में जानकारी मिली। स्थानीय सीएम पूनम देवी से इनकी मुलाकात हुई और जीविका के बारे में जानकारी प्राप्त कर 27 मार्च 2014 को जूली जीविका स्वयं सहायता में जुड़ गयीं। समूह से शुरुआत में प्रारंभिक पूंजी निधि से 5000 रूपये लेकर पट्टे पर भूमि लेकर कृषि कार्य आरंभ की। इससे इनकी आय के श्रोत बढ़ गए। जीविका में जुड़ने से पहले इनकी मासिक आमदनी 5000 रूपये थी और अब 12000 रूपये है.
गांव की महिलाओं को आर्थिक रूप से कर रहीं सशक्त:
कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच जहाँ लोग घर पर रहने को मजबूर है. वहीं ऐसी परिस्थिति में जीविका समूह की महिलाएं मास्क बनाकर लोगों को सहयोग कर रही हैं. शांति देवी कहती हैं, ‘‘ मास्क बनाने के साथ मैं आस-पास की महिलाओं को भी कोरोना संक्रमण से बचने की सलाह देती हूँ. मेरे समूह की सभी महिलाएं जागरूकता कार्य में लगी हैं. मास्क बनाने के क्रम में हमलोगों को भी कोरोना से बचाव के विषय में बहुत सारी जानकारी मिली है एवं इससे गाँव की अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा मिल रही है’’.
भागलपुर जिले के खरीक प्रखंड में कोसी के कछार पर स्थित है लोकमानपुर पंचायत। हर साल बाढ़ के मौसम में कोसी के कोप का कारण बनते हैं पंचायत के लोग। इस वजह से खेती प्रभावित होती है, जबकि गांव के लोगों का कृषि ही मुख्य पेशा है। भौगोलिक तौर पर जटिल होने के कारण यहां के लोग सरकारी लाभ से भी वंचित रह जाते हैं। आवागमन की सुविधा भी नहीं है। प्रखंड मुख्यालय या शहर से जुड़ने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है। इन सारी विकट परिस्थितियों को झेलते हुए ग्रामीण अपना जीवन-बसर कर रहे हैं। यहां पर शांति देवी 2014 से जीविका परियोजना द्वारा स्वयं सहायता समूह के माध्यम से गांव की गरीब महिलाओं को समूहों में जोड़कर आर्थिक रूप सशक्त बनाने का प्रयास कर रही हैं।
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